आचार्य प्रज्ञासागर ससंघ का गरोठ की ओर हुआ विहार

राज की बातें

सनातन संस्कृति में निष्काम भक्ति का महत्व है

भवानीमंडी। भीतर देखने के लिए आंखों का बंद होना जरूरी है। देखने का हुनर तो बचपन से ही आ जाता है लेकिन कुछ दृश्यों को आंखें खोलकर नहीं आंखें मूंद कर देखा जाता है आंखें बंद कर भीतर का संसार दिखाई देता है और आंखें खोल कर बाहर का संसार दिखाई देता हैं। हमें 24 घंटे के भीतर 2 मिनट के लिए ही सही अपने भीतर देखने की कोशिश करनी चाहिए। स्वयं का परिचय पाने के लिए स्वयं को देखना जरूरी है, यह बात आचार्य प्रज्ञा सागर द्वारा नगर में अपनी अंतिम आनंद यात्रा के दौरान कही गई। साथ ही आचार्य श्री ने बताया कि जैन परंपरा दुनिया की इकलौती ऐसी परंपरा है जिसमें भगवान ना तो अपने भक्त से कुछ लेते हैं ना कुछ देते हैं। लेकिन उनके द्वार पर जाने वाले को सब कुछ मिल जाता है। सनातन संस्कृति में केवल निष्काम भक्ति का महत्व है। श्रद्धावान को मांगने की जरूरत नहीं पड़ती। भारतीय संस्कृति में पिता पुत्र से ज्यादा गुरु शिष्य, भक्त भगवान परंपरा का महत्व है। हमें दूसरों की चिंता छोड़कर खुद की फिक्र करनी चाहिए। हमें प्रतिदिन कम से कम 2 पुण्य के कार्य अवश्य करने चाहिए। जिसके साथ ही महाराज श्री द्वारा नगर में नंदी शाला व पक्षी घर बनाए जाने के संबंध में समाज जनों को दिशा निर्देश प्रदान किए गए। इस दौरान पालिका अध्यक्ष कैलाश बोहरा, पूर्व पालिका अध्यक्ष रामलाल गुर्जर, राधेश्याम मंदिर ट्रस्ट अध्यक्ष केके राठी, दिगंबर जैन समाज अध्यक्ष विजय जैन जूली, जिला खाद्य व्यापार संघ अध्यक्ष राजेश नाहर, ऋषभ जैन, महावीर जैन सहित बड़ी संख्या में महिला पुरुष मौजूद रहे। समाज अध्यक्ष विजय जैन जूली ने बताया कि आचार्य प्रज्ञा सागर ससंघ के सानिध्य में नगर में विगत 5 दिनों से भक्ति की गंगा बह रही थी, इसके पश्चात ससंघ द्वारा शुक्रवार सुबह गरोठ की ओर विहार कर लिया गया।

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