नाबालिक व दुष्कर्म के आरोपी को पॉक्सो कोर्ट ने किया बरी
राज की बातें
निर्दोष होते हुए 2 साल 10 माह की काटी जेल
झालावाड़। बेकसुर होते हुए युवक ने नाबालिग से दुष्कर्म के आरोप में दो साल दस माह कि काटी जेल। युवक को पोक्सो कोर्ट ने किया बरी। पुलिस द्वारा प्रकरण में ओपचारिक कार्यवाही व गैर जिम्मेदाराना कृत्य पर वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों के खिलाफ कार्यवाही के लिये डी.जी.पी. जयपुर को भेजी निर्णय की कॉपी। झालावाड़/पोक्सो कोर्ट द्वित्तीय के विशिष्ठ न्यायाधिश श्री ब्रिजेश पंवार ने एक निर्णय देते हुए अपहरण कर बलात्कार के मामले में अभियुक्त दिनेश गुर्जर को बरी कर दिया है। वही इस प्रकरण में जिम्मेदार पुलिस अधिकारियो के गैरजिम्मेदाराना रवैया ओर औपचारिक कार्यवाही पर टिपण्णी करते हुए डीजीपी जयपुर को कार्यवाही के लिए निर्णय की प्रति भी प्रेषित की है। अभियुक्त दिनेश के अधिवक्ता गौरव मोमियां ने बताया कि उक्त प्रकरण में पिड़िता ने दिनांक 06.11.2020 को पुलिस अधीक्षक झालावाड़ को एक परिवाद दिया था उक्त परिवाद मंे पिड़िता ने बताया था कि भुख लगने पर पिड़िता पुलिस लाईन झालावाड़ के यहाँ फल फ्रुट लेने गई थी तभी अभियुक्त दिनेश गुर्जर उसकी पत्नि व माँ उसे मिले जिस पर अभियुक्त की पत्नि ने उसे प्रसाद खिलाया जिसे खा कर वह बेहोश हो गई जिसके बाद अभियुक्त दिनेश गुर्जर ने पिड़िता के साथ अंता जिला बांरा में उसके साथ एक मकान में ले जाकर रात भर बलात्कार किया। पिड़िता की उक्त शिकायत पर महिला थाना पुलिस ने अभियुक्त दिनेश गुर्जर उसकी पत्नि व उसकी माँ के विरूद्ध अपराध धारा 363, 366, 342, भा0 द0 स0 व 3/4 पोक्सो एक्ट में मुकदमा दर्ज कर अनुसंधान प्रारम्भ किया। अनुसंधान अधिकारी ने उक्त प्रकरण में अभियुक्त की माँ व पत्नि की लिप्तता को नही मानते हुए पोक्सो कोर्ट मे चार्जशीट दाखिल की गई जिसके बाद पोक्सो कोर्ट द्वित्तीय में उक्त विचारण शुरू किया।उक्त प्रकरण में अभियोजन पक्ष की और से कुल 24 दस्तावेज तथा 17 गवाह प्रस्तुत किये गये वही अभियुक्त के अधिवक्ता ने अपने बचाव में कुल 6 दस्तावेज पेश किये अभियुक्त की और से अधिवक्ता कुलदीप गुर्जर व गौरव मोमियां ने पेरवी की। न्यायालय ने अभियोजन पक्ष द्वारा पेश किये गये गवाह व दस्तावेज पर तथा बचाव पक्ष की दलीलों पर गम्भीरता से विचार करते हुए मनन किया। पोक्सो कोर्ट ने अपने निर्णय में अकिंत किया है कि दोनो पक्षों के मध्य संम्पत्ति विवाद था इस मुकदमें के पूर्व दोनो पक्षो के मध्य आपराधिक कार्यवाही भी हुई है। वही चिकित्सकीय साक्ष्य में भी बलात्कार की पुष्टि नही हुई। साथ प्रकरण में पीड़िता के नाबालिक होने संबधित कोई विशेष साक्ष्य पेश नही की गई । तथा दोनो पक्ष आपस में रिश्तेदार है माननीय न्यायालय नेे इस स्थिती पर विचार किया की क्या पिड़िता के कथनों के आधार पर ही अभियुक्त आरोपित अपराधों को साबित मान लेना चाहिये, पिड़िता की साक्ष्य विश्वसनीय हो, उसमें किसी प्रकार का सन्देह न हो तो पिड़िता की एक मात्र साक्ष्य भी दोष सिद्धी का आधार हो सकती है लेकिन मामले में जिस प्रकार के तथ्य व परिस्थियां पेश की गई है वह यह प्रकट करती है कि पिड़िता व उसकी माँ सदभाविक नही है उनके द्वारा प्रकट किये गये कथन विश्वाश किये जाने योग्य नही है न्यायालय ने अपने निर्णय में अनुसंधान अधिकारी पर टिपण्णी करते हुऐ लिखा गया है कि अनुसंधान अधिकारी ने भी उक्त प्रकरण में भी निष्पक्ष अनुसंधान नही किया है इन सभी कारणों के मध्य नजर संदेह से परे साक्ष्य पेश कर साबित करने में असफल रहा। न्यायालय में अपने निर्णय में पाया कि अनुसंधान अधिकारी व अन्य पुलिस अधिकारीयो ने मामले में निष्पक्षता का अभाव रखा इस मामले में आरोप पत्र पेश किये जाने का आदेश पुलिस अधीक्षक झालावाड़ द्वारा पारित किया गया है लेकिन एसा प्रकट होता है कि वरिष्ठ पुलिस अधिकारीयों द्वारा ऐसे संवेदशील मामले के अभिलेख का अवलोकन नही किया गया और उनकी और से औपचारिक कार्यवाही की गई वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने पर्यवेक्षणनीय शक्तियों को विधिक रूप से प्रयोग में नही लिया। मामले की परिस्थीतियों के मध्य नजर निर्णय के प्रति पुलिस महानिदेशक राजस्थान राज्य जयपुर को गैर जिम्मेदारीपूर्ण कृत्य करने वाले पुलिस अधिकारीयों के विरूद्ध कार्यवाही हेतु प्रेषित किये जाना उचित प्रकट होता है।
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